विनय पत्रिका-90।ऐसी मूढ़ता या मनकी।Vinay patrika-90।Aisi Mudhta Ya Manki।


ऐसी मूढ़ता या मनकी।
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकनकी 
भावार्थ :- इस मनकी मन की ऐसी मूर्खता है कि यह श्रीराम-भक्तिरूपी गंगाजीको छोड़कर ओसकी बूंदोंसे तृप्त होने की आशा करता है।

धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घनकी ।
नहिं तहँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचनकी ॥ 
भावार्थ :- जैसे प्यासा पपिहा धुएँका गोट देखकर उसे मेघ समझ लेता है, परंतु वहां (जानेपर) न तो उसे शीतलता मिलती है और न जल मिलता है, धुएँसे आंखें और फुट जाती हैं। (यही दशा इस मन की है)।

ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तनकी । 
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आननकी ॥
भावार्थ :- जैसे मूर्ख बाज कांचकी फर्शमें अपने ही शरीरकी परछाई देखकर उसपर चोंच मारनेसे वह टूट जाएगी इस बातको भूखके मारे भूलकर जल्दीसे उसपर टूट पड़ता है (वैसे ही यह मेरा मन भी विषयोंपर टूट पड़ता है)।

कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि! जानत हौ गति जनकी ।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पनकी ॥
भावार्थ :- हे कृपाके भंडार! इस कुचालका मैं कहांतक वर्णन करूं? आप तो दासोंकी दशा जानते ही हैं । हे स्वामीन्! तुलसीदास का दारुण दु:ख हर लीजिए और अपने (शरणागत-वत्सलतारूपी) प्रणकी रक्षा कीजिए।।


यह भी पढ़े श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित 
  विनय पत्रिका पद-96,  जौ पै जिय धरिहौ अवगुन जनके
लिंक- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/96.html


श्री सीता राम !
🙏 कृपया लेख पसंद आये तो  इसे शेयर करें, जिससे और भी धर्मानुरागियों को इसका लाभ मिल सके (प्राप्त कर सकें) ।🙏
साथ ही ऐसी अन्य आध्यात्मिक, भक्ती, पौराणिक  कथा , भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की कथा , श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस आदि से सम्बधित जानकारी पाने के लिए अमृत रहस्य  https://amritrahasya.blogspot.com/ के साथ जुड़े रहें ।

टिप्पणियाँ

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

बाल समय रवि भक्षी लियो तब। HANUMAN ASHTAK- Bal Samay Ravi Bhakchhi Liyo Tab।हनुमान अष्टक ।

विनय पत्रिका-101 | जाऊँ कहाँ तजी चरण तुम्हारे | Vinay patrika-101| पद संख्या १०१

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

विनय पत्रिका-124-जौ निज मन परिहरै बिकारा-Vinay patrika-124-Jau Nij Man Pariharai Bikara

विनय पत्रिका-102।हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।Vinay patrika-102।Hari! Tum Bahut Anugrah kinho।

श्री वेंकटेश्वर स्तोत्रम् Venkatesh Strotram-कमलाकुच चूचुक कुंकमतो-Kamlakuch Chuchuk Kumkmto

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad