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श्री रामचरितमानस अयोध्या काण्ड गतांक दोहा 45से सोरठा क्रमांक 50 तकSri Ramcharitmanas-Ayodhya Kand Doha 45 To 50

श्री रामचरितमानस अयोध्या काण्ड गतांक दोहा 45 से सोरठा क्रमांक 50 तक जाने समझे और अपने जीवन मे उतारे। दोहा : मंगल समय सनेह बस सोच परिहरिअ तात।           आयसु देइअ हरषि हियँ कहि पुलके प्रभु गात॥45॥           भावार्थ :- हे पिताजी! इस मंगल के समय स्नेहवश होकर सोच करना छोड़ दीजिए और हृदय में प्रसन्न होकर मुझे आज्ञा दीजिए। यह कहते हुए प्रभु श्री रामचन्द्रजी सर्वांग पुलकित हो गए॥45॥ चौपाई : धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू॥           चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें॥1॥           भावार्थ :-   (उन्होंने फिर कहा-) इस पृथ्वीतल पर उसका जन्म धन्य है, जिसके चरित्र सुनकर पिता को परम आनंद हो, जिसको माता-पिता प्राणों के समान प्रिय हैं, चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) उसके करतलगत (मुट्ठी में) रहते हैं॥1॥ आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई॥           बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी॥2॥           भावार्थ :-   आपकी आज्ञा पालन करके और जन्म का फल पाकर मैं जल्दी ही लौट आऊँगा, अतः कृपया आज्ञा दीजिए। माता से विदा माँग आता हूँ। फिर आपके पैर