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श्री वेंकटेश्वर प्रपत्ति-Venkateshwr Prapati-ईशानां जगतोऽस्य वेंकटपते-Ishanam Jagtosy Venkatpate

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श्री वेंकटेश्वर प्रपत्ति (Hindi/English) ईशानां जगतोऽस्य वेंकटपते र्विष्णोः परां प्रेयसीं           तद्वक्षःस्थल नित्यवासरसिकां तत्-क्षांति संवर्धिनीम् । पद्मालंकृत पाणिपल्लवयुगां पद्मासनस्थां श्रियं           वात्सल्यादि गुणोज्ज्वलां भगवतीं वंदे जगन्मातरम् ॥ श्रीमन् कृपाजलनिधे कृतसर्वलोक,             सर्वज्ञ शक्त नतवत्सल सर्वशेषिन् । स्वामिन् सुशील सुल भाश्रित पारिजात,           श्रीवेंकटेशचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 2 ॥ आनूपुरार्चित सुजात सुगंधि पुष्प,           सौरभ्य सौरभकरौ समसन्निवेशौ । सौम्यौ सदानुभनेऽपि नवानुभाव्यौ,           श्रीवेंकटेश चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 3 ॥ सद्योविकासि समुदित्त्वर सांद्रराग,           सौरभ्यनिर्भर सरोरुह साम्यवार्ताम् । सम्यक्षु साहसपदेषु विलेखयंतौ,           श्रीवेंकटेश चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 4 ॥ रेखामय ध्वज सुधाकलशातपत्र ,           वज्रांकुशांबुरुह कल्पक शंखचक्रैः । भव्यैरलंकृततलौ परतत्त्व चिह्नैः,           श्रीवेंकटेश चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 5 ॥ ताम्रोदरद्युति पराजित पद्मरागौ,           बाह्यैर्-महोभि रभिभूत महेंद्रनीलौ । उद्य न्नखांशुभि रुदस्त शशांक