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विनय पत्रिका-99| बिरद गरीब निवाज रामको|Birad Garib Nivaj Ramko| Vinay patrika-99|

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बिरद गरीबनिवाज रामको।      गावत वेद-पुराण, सम्भु-सुक, प्रगट प्रभाउ नामको।। भावार्थ :-  श्री रामजी का बना ही गरीबों को निहाल कर देना है। वेद, पुराण, शिवजी, सुखदेवजी आदि यही गाते हैं। उनके श्रीरामनाम का प्रभाव तो प्रत्यक्ष ही है।। ध्रुव, प्रह्लाद, बिभीषन, कपिपति, जड़, पतंग, पांडव, सुदामको।      लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमे को है राम कामको।। भावार्थ :-  ध्रुव, प्रह्लाद, विभीषण, सुग्रीव, जड़ (अहल्या), पक्षी (जटायु, काकभुशुण्डि), पाँचों पाण्डव और सुदामा इन सबको भगवान् ने इस लोकमें सुंदर यश और परलोकमें सद्गति दी। इनमेंसे रामके कामका भला कौन था?।। गनिका, कोल, किरात, आदिकबि इंहते अधिक बाम को।      बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको।। भावार्थ :-  गणिका(जीवंती), कोल-किरात(गुह-निषाद आदि) तथा आदिकवि बाल्मीकि, इनसे बुरा कौन था? अजामिलने कब अश्वमेधयज्ञ किया था, गजराज ने कम सामवेदका गान किया था?।। छली, मलीन, हीन सब ही अँग, तुलसी सो छीन छामको।      नाम-नरेस-प्रताप प्रबल जग, जुग-जुग चालत चामको।। भावार्थ :-  तुलसीके सामान कपटी, मलिन, सब साधनोंसे हीन, दुबला-पतला और कौन है? पर श्रीरामके नामरू