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श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-Ramayan Bal kand-sita Svambar katha

श्री रामचरितमानस बालकांड में भगवान श्री रामजी ने  ताड़का का वद्ध कर विश्वामित्र मुनि की यज्ञ की रक्षा की उसके बाद विश्वामित्र मुनि ने श्रीराम एवं  लक्ष्मण दोनों भाइयों को लेकर    श्री  सीताजी का स्वयंवर देखने मिथिला पहुंचे आगे की कथा - चौपाई : सीय स्वयंबरू देखिअ जाई । ईसु काहि धौं देइ बड़ाई ॥           लखन कहा जस भाजनु सोई । नाथ कृपा तव जापर होई ॥         भावार्थ:-  चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बड़ाई का पात्र होगा (धनुष तोड़ने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा) ॥ हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी ॥           पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला ॥           भावार्थ:- इस श्रेष्ठ वाणी को सुनकर सब मुनि प्रसन्न हुए। सभी ने सुख मानकर आशीर्वाद दिया। फिर मुनियों के समूह सहित कृपालु श्री रामचन्द्रजी धनुष यज्ञशाला देखने चले ॥ रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई ॥           चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी ॥           भावार्थ:- दोनों भाई रंगभूमि में