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विनय पत्रिका-105।अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।Vinay patrika-105।Ablaun Nasani,Ab N Nasaihaun।

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अबलौं नसानी,अब न नसैहौं ।        राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं ॥      भावार्थ :-  अबतक तो (यह आयु व्यर्थ ही) नष्ट हो गयी, परन्तु अब इसे नष्ट नहीं होने दूंगा। श्रीरामकी कृपासे संसाररूपी रात्रि बीत गयी है, (मैं संसारकी माया-रात्रिसे जग गया हूँ) अब जागनेपर फिर (मायाका) बिछौना नहीं बिछाऊँगा (अब फिर मायाके फंदेमें नहीं फँसूंगा) ॥  पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं ।       स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं ॥      भावार्थ :-  मुझे रामनामरूपी सुन्दर चिन्तामणि मिल गयी है। उसे हृदयरूपी हाथसे कभी नहीं गिरने दूंगा। अथवा हृदयसे रामनामका स्मरण करता रहूँगा और हाथसे रामनामकी माला जपा करूँगा। श्रीरघुनाथजीका जो पवित्र श्यामसुन्दर रूप है उसकी कसौटी बनाकर अपने चित्तरूपी सोनेको कसूंगा। अर्थात् यह देखूूँगा कि श्रीरामके ध्यानमें मेरा मन सदा-सर्वदा लगता है कि नहीं॥  परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं ।        मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं ॥        भावार्थ :-  जबतक मैं इन्द्रियोंके वशमें था, तबतक उन्होंने (मुझे मनमाना नाच नचाकर) मेरी ब