विनय पत्रिका-126-मन मेरे, मानहि सिख मेरी-Vinay Patrika-126-Man Mere Manhi Sikh Meri
मन मेरे, मानहि सिख मेरी । जो निजु भगति चहै हरि केरी ॥ १ ॥ भावार्थ :— हे मेरे मन! यदि तू अपने हृदयमें भगवान्की शक्ति चाहता है, ते मेरी सीख मान ॥ १ ॥ उर आनहि प्रभु-कृत हित जेते । सेवहि ते जे अपनपौ चेते ॥ २ ॥ भावार्थ:- भगवान्ने (गर्भवाससे लेकर अबतक) तेरे ऊपर जो (अपार) उपकार किये हैं उनको याद कर, और अहंकार छोड़कर, बड़ी सावधानीसे तत्पर होकर उनकी सेवा कर ॥ २ ॥ दुख-सुख अरु अपमान-बड़ाई। सब सम लेखहि बिपति बिहाई ॥ ३ ॥ भावार्थ :- सुख-दुःख, मान-अपमान, सबको समान समझ; तभी तेरी विपत्ति दूर होगी ॥ ३ ॥ सुनु सठ काल-ग्रसित यह देही । जनि तेहि लागि बिदूषहि केही ॥ ४॥ भावार्थ :- अरे दुष्ट! इस शरीरको तो कालने ग्रस...