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श्रीदत्तात्रेय - यदु संवाद | Shri Datatrey - Yadu Samvad | श्रीदत्तात्रेयजी के 24 गुरु |

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       एकबार राजा यदु घुमते-घुमते वन में गये तो उन्होंने देखा कि एक वृक्ष के नीचे मोटा-ताजा, हृष्ट-पुष्ट, एक महात्मा निर्भय पड़े हैं। जिनका नाम दत्तात्रेय है। उन महात्मा से यदुजी ने पूछा कि हे महात्मन् ! यहाँ आस पास ना  तो   घर है , ना ही आप कोई   खेती-व्यापार आदि   ही करते हैं, ना ही आपके रहने की जगह   ही है, ना ही कोई यहाँ आपकी   सेवा करने वाले   ही हैं।  फिर भी आप उसी तरह मालूम पड़ रहे हैं, जैसे आप इस संसार में निर्भय हैं अर्थात इसी संसाररूपी जंगल में मैं   पुत्र, पत्नी, धन, संपत्ति रूपी मोह   एवं   लोभ रूपी अग्नि  से   जल रहा हूँ   परंतु आप पर कोई प्रभाव ही नहीं है ऐसा क्यों? राजा यदु के वचनों को सुनकर दत्तात्रेय जी मंद मुस्कराये, तो यदु जी ने कहा हे महात्मन्! आप यही कहना चाहते होंगे कि मैं त्यागी हूँ, मैं वैरागी और संन्यासी हूँ । तो ठीक ही है परंतु आप ही त्यागी-वैरागी और सन्यासी कैसे हो गए मैं क्यों नहीं हुआ? इसका कारण आप बताएं? तब श्रीदत्तात्रेय जी ने कहा हे यदु ! जिस कारण से मैंने संतोष और शांति आदि प्राप्त किया है, उसका मुख्य कारण है कि मैंने अपने जीवन में शिक्षा प्राप्ति