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पुरुषोत्तम (अधिक मास)

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 *प्रातः दर्शन शुक्रवार 18=09=2028 पुरुषोत्तम मास* पुरुषोत्तम (अधिक मास) 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर विशेष पुरुषोत्तम मास हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। संपूर्ण भारत की हिंदू धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि यह माह इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है, तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों और किस कारण से इसे इतना पवित्र माना जाता है? इस एक माह को तीन विशिष्ट नामों से क्यों पुकारा जाता है? इसी तरह के तमाम प्रश्न स्वाभाविक रूप से हर जिज्ञासु के मन में आते हैं। तो आज ऐसे ही कई प्रश्नों

आत्मनिवेदन-भक्ति bhakti

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आत्मनिवेदन-भक्ति भक्ति ही एक ऐसा साधन है,जिसमे हम सभी सुगमता (आसानी )से कर सकते है(अपने जीवन में उतार सकते हैं )| इस कलिकाल में भक्ति के समान आत्मोद्धार  (आत्म शांति ) के लिए दूसरा कोई सुगम उपाय नहीं है; क्योंकि ज्ञान, योग, तप, यज्ञ आदि इस समय (इस शरीर से) सिद्ध होना बहुत कठिन है 'ईश्वर में अनुराग, प्रेम, होना यही भक्ति है|'  शास्त्रोंमें भक्ति के भिन्न-भिन्न प्रकारसे अनेक लछण बतलाए गए हैं, किन्तु विचार करनेपर सिद्धांतमें कोई भेद नहीं है | तात्पर्य सबका प्रायः एक ही है कि स्वामी (जिनको हम पूजते, मानते, या जिसमे बिस्वास रखते हैं) जिस भाव या आचरणसे संतुस्त हो, उसी प्रकार का आचरण करना (भाव रखना) ही  भक्ति  है श्रीमद्भगवतमें भी प्रहलादजी ने कहा  है -                 श्रवणम कीर्तनम वैष्णो: स्मरणम पादसेवनम |                अर्चनम वंदनम दास्यम  सख्यमात्मनिवेदनम || ''भगवान विष्णु के नाम, रूप, गुण, और प्र्भावादिका श्रवण, कीर्तन, और स्मरण तथा भगवान कि चरणसेवा, पुजन और वंदन एवं भगवानमें दासभाव, सखाभाव और अपनेको समपर्ण कर देना- यह नौ प्रकार की भक्ति है |''