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गजेन्द्र मोक्ष-कथा | गज और ग्राह कथा |Grah-Gajendra Katha | Gajendra Moksh Katha |

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  एक दिन गजेन्द्र अपनी पत्नी हथिनी, पुत्र , पौत्रों, के साथ प्यास से व्याकुल होकर त्रिकुट नाम का एक विशाल पर्वत जो चारों तरफ से क्षीरसागर से घिरा है, उस त्रिकुट पर्वत की तराई के स्थित उद्यान में स्वर्ण कमलों से विलसित एक सरोवर पर वह पहुँचा।      पानी पीने के लिए अपने झुंड के साथ सरोवर में प्रवेश कर पानी पीकर वह जल क्रीड़ा में मस्त हो गया। उसने सरोवर में खूब स्नान किया और थकान मिटायी। उधर सरोवर का ग्राह गजेंद्र एवं उसके झुंड द्वारा जलक्रीड़ा करने से अशांत हो गया , परन्तु गजेंद्र गृहस्थ पुरुषों के समान अपने ऊपर मंडराते हुये संकट को नहीं समझ सका , ग्राह व्याकुल   होकर उस गजेंद्र का पैर पकड़ लिया।      कुछ समय तक उसके झुंड के हाथी , हथिनियों एवं परिवार के लोगों ने गजेन्द्र को ग्राह की पकड़ से खिंचकर निकालने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए । निराश होकर उन लोगों ने गजेंद्र को सरोवर में छोड़ दिया। ग्राह उसे खींच रहा था। इस प्रकार गज और ग्राह हजारों वर्षों तक उस सरोवर में लड़ते रहे। इस संसार में भी ऐसा सुना या देखा जाता है कि जबतक किसी  प्राणी को अपनी शक्ति या धन , जन , बल