श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणम् | Sri Ramchandra Kripalu Bhaj मन| मानस स्तुति २| Manas Stuti 2|
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणम् | नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कन्जारुणम् || कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील नीरज सुन्दरम् | पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरम || भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकंदनम | रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथनन्दनम् || सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं | आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं || इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम् | मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनम् || यह भी पढ़े श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित मानस स्तुति । जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता । लिंक :- https://amritrahasya.blogspot.com/2020/12/manas-stuti.html मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो | करुणानिधान सुजान शील सनेह जानत रावरो || एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली | तुलसी भवानिहिं पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली || यह भी पढ़ें :- भय प्रगत कृपाला दिन दयाला लिंक :- https://amritrahasya.blog...