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भगवान शिव कैसे 5 मुखों वाले हो गए?Bhagvan Shiv Kaise 5 Mukhe ke Ho Gain?

         ऐसा माना जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने अत्यन्त मनोहर किशोर रूप धारण किया । उस मनोहर रूप को देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनन्त, सहस्त्राक्ष इन्द्र आदि देवता आए । उन्होंने एकमुख वालों की अपेक्षा भगवान के रूपमाधुर्य का अधिक आनन्द लिया । यह देखकर भगवान शिव सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख व नेत्र होते तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता । भगवान शिव के मन में इस इच्छा के उत्पन्न होते ही वे पंचमुख हो गए ।      भगवान शिव के पांच मुख— सद्योजात , वामदेव , तत्पुरुष , अघोर और ईशान हुए और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र बन गए । तभी से वे ‘पंचानन’ या ‘पंचवक्त्र’ कहलाने लगे । भगवान शिव के पांच मुख चारों दिशाओं में और पांचवा मध्य में है ।  भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष है । तत्पुरुष का अर्थ है अपने आत्मा में स्थित रहना,   तत्पुरुष मुख का  रंग पीत वर्ण का है |  भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात है । यह बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं । पश्चिम मुख सद्योजात श्वेत वर्ण का है  |   भगवान शिव के उत्तर दिशा का मुख वामदेव है