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श्री राम एवं लक्ष्मण संवाद | Sri Ram And Lakchhaman Samvad

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श्री राम जी ने लक्ष्मण जी समझाया सुनि सुर बचन लखन सकुचाने।       राम सीयँ सादर सनमाने॥ कही तात तुम्ह नीति सुहाई।      सब तें कठिन राजमदु भाई॥            देववाणी सुनकर लक्ष्मणजी सकुचा गए। श्री रामचंद्रजी और सीताजी ने उनका आदर के साथ सम्मान किया (और कहा-) हे तात! तुमने बड़ी सुंदर नीति कही। हे भाई! राज्य का मद सबसे कठिन मद है॥ जो अचवँत नृप मातहिं तेई।       नाहिन साधुसभा जेहिं सेई॥ सुनहू लखन भल भरत सरीसा।      बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा॥           जिन्होंने साधुओं की सभा का सेवन (सत्संग) नहीं किया, वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा का आचमन करते ही (पीते ही) मतवाले हो जाते हैं। हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया है॥ दोहा : भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।     कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ॥            (अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या है) ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का पद पाकर भी भरत को राज्य का मद नहीं होगा |  क्या कभी काँजी की बूँदों से क्षीरसमुद्र नष्ट हो सकता (फट सकता) है?॥ चौपाई : तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गलिई।