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लक्ष्मी माता आरती-ॐ जय लक्ष्मी माता।Ma Lakshmi Arti-Om Jay Lakshmi Mata।

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लक्ष्मी माता आरती ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।      तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥ ॐ जय... उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।      सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय... तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।      जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥ ॐ जय... तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।      कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय... जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।      सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ॐ जय...   तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।      खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥ ॐ जय...   शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।      रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥ ॐ जय...   महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।      उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥  ॐ जय... ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। यह भी पढ़े   दुर्गा आरती      जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी । लिंक-  https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/durga-aartijai-ambe-gauri.html दुर्गा मंत्र सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||

दुर्गा आरती ।जय अम्बे गौरी।Durga Aarti-Jai Ambe Gauri।

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दुर्गा आरती जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।      तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ जय अम्बे..... ॥  मांग सिंदूर विराजत ,टीको मृगमद को।      उज्ज्वल से दोउ नैना ,चंद्रबदन नीको ॥ जय अम्बे.....॥  कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।      रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥ जय अम्बे.....॥  केहरि वाहन राजत ,खड्ग खप्पर धारी।      सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःख हारी ॥ जय अम्बे.....॥  कानन कुण्डल शोभित ,नासाग्रे मोती।      कोटिक चंद्र दिवाकर ,राजत सम ज्योति ॥ जय अम्बे.....॥  शुम्भ-निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।      धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती ॥ जय अम्बे.....॥  चण्ड मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।      मधु कैटभ दोउ मारे ,सुर भयहीन करे ॥ जय अम्बे.....॥   ब्रह्माणी, रुद्राणी ,तुम कमला रानी ।      आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ॥ जय अम्बे.....॥  चौंसठ योगिनि मंगल गावत, नृत्य करत भैरू।      बाजत ताल मृदंगा ,अरू बाजत डमरू ॥ जय अम्बे.....॥  तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता ।      भक्तन की दु:ख हर्ता, सुख सम्पति कर्ता ॥ जय अम्बे.....॥  भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी ।      म

श्री विष्णु आरती। Sri Vishnu Aarti।ॐ जय जगदीश हरे।Om Jai Jagdish Hare।

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श्री विष्णु आरती ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी  जय जगदीश हरे।     भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ॐ जय..॥  जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसे मन का।     सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का ॥ॐ जय..॥  मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।     तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी ॥ॐ जय..॥ तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥     पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ॐ जय..॥  तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता।     मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ॐ जय..॥  तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।     किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥ॐ जय..॥ दीनबंधु दु:खहर्ता, तुम रक्षक मेरे।     अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ॐ जय..॥  विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।     श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ॐ जय..॥  तन-मन-धन, सब कुछ तेरा।     तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ॥ॐ जय..॥  श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे।     कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी  जय जगदीश हरे। यह भी पढ़े श्री शिव आरती , ॐ जय शिव ओमकारा । लिंक :- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/shiv-arti-jay-shiv-omkar