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संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

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संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् । काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।     नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।। खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।     हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।। काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।      जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।। रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।      निशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।। जाइ पाताल हने अहिरावण ।देविहिं टारि पाताल पठाई ।।      वै भुज काह भये हनुमन्त ।लियो जिहि ते सब संत बचाई ।। औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।      भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।। काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।।      गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।। छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।।      जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।। मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।      पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर