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आत्मनिवेदन-भक्ति bhakti

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आत्मनिवेदन-भक्ति भक्ति ही एक ऐसा साधन है,जिसमे हम सभी सुगमता (आसानी )से कर सकते है(अपने जीवन में उतार सकते हैं )| इस कलिकाल में भक्ति के समान आत्मोद्धार  (आत्म शांति ) के लिए दूसरा कोई सुगम उपाय नहीं है; क्योंकि ज्ञान, योग, तप, यज्ञ आदि इस समय (इस शरीर से) सिद्ध होना बहुत कठिन है 'ईश्वर में अनुराग, प्रेम, होना यही भक्ति है|'  शास्त्रोंमें भक्ति के भिन्न-भिन्न प्रकारसे अनेक लछण बतलाए गए हैं, किन्तु विचार करनेपर सिद्धांतमें कोई भेद नहीं है | तात्पर्य सबका प्रायः एक ही है कि स्वामी (जिनको हम पूजते, मानते, या जिसमे बिस्वास रखते हैं) जिस भाव या आचरणसे संतुस्त हो, उसी प्रकार का आचरण करना (भाव रखना) ही  भक्ति  है श्रीमद्भगवतमें भी प्रहलादजी ने कहा  है -                 श्रवणम कीर्तनम वैष्णो: स्मरणम पादसेवनम |                अर्चनम वंदनम दास्यम  सख्यमात्मनिवेदनम || ''भगवान विष्णु के नाम, रूप, गुण, और प्र्भावादिका श्रवण, कीर्तन, और स्मरण तथा भगवान कि चरणसेवा, पुजन और वंदन एवं भगवानमें दासभाव, सखाभाव और अपनेको समपर्ण कर देना- यह नौ प्रकार की भक्ति है |''