विनय पत्रिका-95 | तऊ न मेरे अघ -अवगुन गनिहैं।Tau N Mere Agh-Avgun Ganihain| vinay Patrika-95|



तऊ न मेरे अघ -अवगुन गनिहैं।
जौ जमराज काज सब परिहरि, 
इहै ख्याल उर अनिहैं।।
भावार्थः- हे श्रीरामजी! यदि यमराज सब कामकाज छोड़कर केवल मेरे ही पापों और दोषोंके हिसाब -किताबका खयाल करने लगेंगे, तब भी उनको गेम गिन नहीं सकेंगे (क्योंकि मेरे पापों की कोई सीमा नहीं है) । 

चलिहैं छुटि पुंज पापिनके, असमंजस जिय जनिहैं।
देखि खलल अधिकार प्रभुसों (मेरी) भूरि भलाई भनिहैं।।
भावार्थः- (और जब वह मेरे हिसाबमें लग जाएंगे, तब उन्हें इधर उलझे हुए समझकर) पापियोंके दल- के- दल छूटकर भाग जाएंगे। इससे उनके मनमें बड़ी चिंता होगी। (मेरे कारणसे ) अपने अधिकारमें बाधा पहुंचते देखकर भगवानके दरबारमें अपने को निर्दोष साबित करनेके लिए) वह आपके सामने मेरी बहुत बढ़ाई कर देंगे (कहेंगे की तुलसीदास आपका भक्त है, इसने कोई पाप नहीं किया, आपके भजनके प्रतापसे इसने दूसरे पापियोंको भी पाप के बंधन से छुड़ा दीया)।।

हँसि करिहैं परतीति भगतकी भगत-शिरोमनि मनिहैं।
ज्यों त्यों तुलसीदास कोसलपति अपनायेहि पर बनिहैं।।
भावार्थः- तब आप हंसकर अपने भक्त यमराजका विश्वास कर लेंगे और मुझे भक्तों में शिरोमणि मान लेंगे ।बात यह है कि हे कोसलेश ! जैसे- तैसे आपको मुझे अपनाना ही पड़ेगा।।

यह भी पढ़े श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित विनय पत्रिका, पद-94,
काहे ते हरि  मोहिं बिसारो।
लिंक :- https://amritrahasya.blogspot.com/2020/12/vinay-patrika-94-pad-no-94.html


श्री सीता राम !
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