नवदुर्गा स्तॊत्रम् NavDurga Stotram Srinu Devi Prvakshyami Kavachm

नवदुर्गा स्तॊत्रम्

ईश्वर उवाच ।

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
        पठित्वा पाठयित्वा च नरो मुच्येत संकटात् ॥ 1 ॥

अज्ञात्वा कवचं देवि दुर्गामंत्रं च यो जपेत् ।
        न चाप्नोति फलं तस्य परं च नरकं व्रजेत् ॥ 2 ॥

उमादेवी शिरः पातु ललाटे शूलधारिणी ।
        चक्षुषी खेचरी पातु कर्णौ चत्वरवासिनी ॥ 3 ॥

सुगंधा नासिकं पातु वदनं सर्वधारिणी ।
        जिह्वां च चंडिकादेवी ग्रीवां सौभद्रिका तथा ॥ 4 ॥

अशोकवासिनी चेतो द्वौ बाहू वज्रधारिणी ।
        हृदयं ललितादेवी उदरं सिंहवाहिनी ॥ 5 ॥

कटिं भगवती देवी द्वावूरू विंध्यवासिनी ।
        महाबला च जंघे द्वे पादौ भूतलवासिनी ॥ 6 ॥

एवं स्थिताऽसि देवि त्वं त्रैलोक्ये रक्षणात्मिका ।
        रक्ष मां सर्वगात्रेषु दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ 7 ॥

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|| श्री आदि शक्ति दुर्गा ध्यानम्  ||
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||

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या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। 
        नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता। 
        नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता। 
        नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषु विष्णु-रूपेण संस्थिता। 
        नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । 
        नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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