श्रीविन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्-निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम्-Vindhyeshvari Stotram-Nishumbh-Shumbh-Mrdani
श्रीविन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् :
निशुम्भशुम्भ मर्दिनीं प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनीम्। वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
त्रिशूल मुण्ड धारिणीं धराविघात हारिणीम्। गृहे गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम।।
दरिद्र दु:ख हारिणीं सतां विभूति कारिणीम्। वियोग शोक हारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
लसत्सुलोलचनां लतां सदा वरप्रदाम्। कपाल शूलधारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
करे मुदा गदा धरां शिवां शिव प्रदायिनीम्। वरावराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
ऋषीन्द्रजामिन प्रदां त्रिधास्य रूप धारिणिम्। जले स्थले निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
विशिष्ट सृष्टि कारिणीं विशाल रूप धारिणीम्। महोदरां विशालिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
प्रन्दरा दिसेवितां मुरादि वंशखण्डिनीम्। विशुद्ध बुद्धिकारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
यह भी पढ़ें :- दुर्गा आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
लिंक:- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/durga-aartijai-ambe-gauri.html
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
लिंक:- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/durga-aartijai-ambe-gauri.html
माँ विंध्यवशनी स्त्रोत्र
निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम्। वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।। भावार्थ :- शुम्भ तथा निशुम्भ का संहार करने वाली, चण्ड तथा मुण्ड का विनाश करने वाली, वन में तथा युद्ध स्थल में पराक्रम प्रदर्शित करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
त्रिशूलमुण्डधारिणीं धराविघातहारिणीम्।
गृहे गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम।।
भावार्थ :- त्रिशूल तथा मुण्ड धारण करने वाली, पृथ्वी का संकट हरने वाली और घर-घर में निवास करने वाली भगवती विन्धवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
दरिद्रदु:खहारिणीं सतां विभूतिकारिणीम्।
वियोगशोकहारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
भावार्थ :- दरिद्रजनों का दु:ख दूर करने वाली, सज्जनों का कल्याण करने वाली और वियोगजनित शोक का हरण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
लसत्सुलोलचनां लतां सदावरप्रदाम्।
कपालशूलधारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
भावार्थ :- सुन्दर तथा चंचल नेत्रों से सुशोभित होने वाली, सुकुमार नारी विग्रह से शोभा पाने वाली, सदा वर प्रदान करने वाली और कपाल तथा शूल धारण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
करे मुदा गदाधरां शिवां शिवप्रदायिनीम्।
वरावराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
भावार्थ :- प्रसन्नतापूर्वक हाथ में गदा धारण करने वाली, कल्याणमयी, सर्वविध मंगल प्रदान करने वाली तथा सुरुप-कुरुप सभी में व्याप्त परम शुभ स्वरुपा भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
ऋषीन्द्रजामिनप्रदां त्रिधास्यरूपधारिणिम्।
जले स्थले निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
भावार्थ :- ऋषि श्रेष्ठ के यहाँ पुत्री रुप से प्रकट होने वाली, ज्ञानलोक प्रदान करने वाली, महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती रूप से तीन स्वरुपों धारण करने वाली और जल तथा स्थल में निवास करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
विशिष्टसृष्टिकारिणीं विशालरूपधारिणीम्।
महोदरां विशालिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
भावार्थ :- विशिष्टता की सृष्टि करने वाली, विशाल स्वरुप धारण करने वाली, महान उदर से सम्पन्न तथा व्यापक विग्रह वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
प्रन्दरादिसेवितां मुरादिवंशखण्डिनीम्।
विशुद्धबुद्धिकारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
भावार्थ :- इन्द्र आदि देवताओं से सेवित, मुर आदि राक्षसों के वंश का नाश करने वाली तथा अत्यन्त निर्मल बुद्धि प्रदान करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ|
यह भी पढ़ें लक्ष्मी माता आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
लिंक :- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/ma-lakshmi-arti-om-jay-lakshmi-mata.html
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
लिंक :- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/ma-lakshmi-arti-om-jay-lakshmi-mata.html
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें