श्री रामानुज अष्टकम् Sri Ramanuj Ashtkam-Ramanujay Munye Nm Ukti


श्री रामानुज अष्टकम्

रामानुजाय मुनये नम उक्ति मात्रं कामातुरोऽपि कुमतिः कलयन्नभीक्षम् ।
        यामामनंति यमिनां भगवज्जनानां तामेव विंदति गतिं तमसः परस्तात् ॥ 1 ॥

सोमावचूडसुरशेखरदुष्करेण कामातिगोऽपि तपसा क्षपयन्नघानि ।
        रामानुजाय मुनये नम इत्यनुक्त्वा कोवा महीसहचरे कुरुतेऽनुरागम् ॥ 2 ॥

रामानुजाय नम इत्यसकृद्गृणीते यो मान मात्सर मदस्मर दूषितोऽपि ।
        प्रेमातुरः प्रियतमामपहाय पद्मां भूमा भुजंगशयनस्तमनुप्रयाति ॥ 3 ॥

वामालकानयनवागुरिकागृहीतं क्षेमाय किंचिदपि कर्तुमनीहमानम् ।
        रामानुजो यतिपतिर्यदि नेक्षते मां मा मामकोऽयमिति मुंचति माधवोऽपि ॥ 4 ॥

रामानुजेति यदितं विदितं जगत्यां नामीपि न श्रुतिसमीपमुपैति येषाम् ।
        मा मा मदीय इति सद्भिरुपेक्षितास्ते कामानुविद्धमनसो निपतंत्यधोऽधः ॥ 5 ॥

नामानुकीर्त्य नरकार्तिहरं यदीयं व्योमाधिरोहति पदं सकलोऽपि लोकः ।
        रामानुजो यतिपतिर्यदि नाविरासीत् को मादृशः प्रभविता भवमुत्तरीतुम् ॥ 6 ॥

सीमामहीध्रपरिधिं पृथिवीमवाप्तुं वैमानिकेश्वरपुरीमधिवासितुं वा ।
        व्योमाधिरोढुमपि न स्पृहयंति नित्यं रामानुजांघ्रियुगलं शरणं प्रपन्नाः ॥ 7 ॥

मा मा धुनोति मनसोऽपि न गोचरं यत् भूमासखेन पुरुषेण सहानुभूय ।
        प्रेमानुविद्धहृदयप्रियभक्तलभ्ये रामानुजांघ्रिकमले रमतां मनो मे ॥ 8 ॥

श्लोकाष्टकमिदं पुण्यं यो भक्त्या प्रत्यहं पठेत् ।
        आकारत्रयसंपन्नः शोकाब्धिं तरति द्रुतम् ॥

 

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