श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणम् | Sri Ramchandra Kripalu Bhaj मन| मानस स्तुति २| Manas Stuti 2|
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कन्जारुणम् ||
कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील नीरज सुन्दरम् |
पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरम ||
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकंदनम |
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथनन्दनम् ||
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम् |
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनम् ||
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मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो |
करुणानिधान सुजान शील सनेह जानत रावरो ||
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली |
तुलसी भवानिहिं पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ||
राम मंत्र
नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम्, सीता समारोपित वामभागम्।
पाणौ महासायक चारु चापम्, नमामि रामं रघुवंश नाथम्।।
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भावार्थ सहित श्री रामचंद्र कृपालु भज मन स्तुति :-
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कन्जारुणम् ||
भावार्थ :- हे मन! कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर, वे संसारके जन्म-मरड़रूप दारूण भय को दूर करने वाले हैं। उनके नेत्र नव-विकसित कमलके समान हैं; मुख, हाथ और चरण भी लाल कमल के समान हैं ||
कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील नीरज सुन्दरम् |
पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरम ||
भावार्थ :- उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है, उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसे सुंदर वर्ण है। पीताम्बर मेघ रूप शरीर में मानो बिजली के समान चमक रहा है, ऐसे पावनरूप जानकी पति श्रीराम जी को मै नमस्कार करता हूँ ।।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथनन्दनम् ।।
भावार्थ :- हे मन! दिनों के बन्धु, सूर्यके समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंशका समूल नाश करनेवाले, आनन्दकन्द, कोशल-देशरूपी आकाशमें निर्मल चन्द्रमाके समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ||
भावार्थ :- जिनके मस्तकपर रत्नजटित मुटुक, कानों में कुण्डल, भालपर सुंदर तिलक और प्रत्येक अंगमें सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं; जिनकी भुजाएं घुटनोंतक लंबी हैं; जो घनुष-बाण लिए हुए हैं; जिन्होंने संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम् |
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनम् ||
भावार्थ :- जो शिव, शेष और मुनियों के मनको प्रसन्न करने वाले और काम-क्रोध-लोभादि शत्रुओंका नाश करनेवाले हैं। तुलसीदास प्रार्थना करता है कि वे श्रीरघुनाथ जी मेरे हृदय-कमलमें सदा निवास करें।।
पाणौ महासायक चारु चापम्, नमामि रामं रघुवंश नाथम्।।
Sri Ramachandra kripalu Bhaj Man Haran Bhav Bhay Darunam ।
Navkanj Lochan Kanj Mukh kar Kanj Pad Kanjarunam ॥
Kandarp Aganit Amit Chhavi NavNil Niraj Sundaram ।
Patpit Manhu Tadit Ruchi Suchi Naumi Janak Sutavaram ॥
Bhaju Din Bandhu Dinesh Danav Daityavans Nikandanam ।
Raghunand Anandakand KausalChand Dasarath Nandanam ॥
Sir Mukut Kundal Tilak Charu Udaru Ang Vibhusanam।
Ajanu Bhuj Sarchap Dhar Sangram Jit KharDusnam ॥
iti Vadati tulasidas Shankar Ses Muni Manaranjanam ।
Mam hridayakanj Nivas Kuru Kamadi Khal Dal Manjanam ॥
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अप्रतिम
जवाब देंहटाएंजय श्रीराम
जवाब देंहटाएंशरणागत वत्सल भगवाना
जवाब देंहटाएंजय श्रीमन्नारायण
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