विनय पत्रिका 270 कबहुँ कृपा करि रघुबीर ! Pad No-270 Vinay patrika| पद संख्या -270

कबहुँ कृपा करि रघुबीरसिदास ! मोहू चितैहो |
    भलो-बुरो जन आपनो, जिय जानि दयानिधि ! अवगुन अमित बितैहो  ||
    भावार्थ :- हे ! रघुबीर ! कभी कृपा कर मेरी ओर भी देखेंगे ? हे दयानिधान ! 'भला-बुरा जो कुछ भी हूँ , आपका दास हूँ ', अपने मनमें इस बात को समझकर क्या मेरे अपार अवगुणोंका अंत कर देंगे ? (अपनी दया से मेरे सब पापोंका नाश कर मुझे अपना लेंगें ?)||

जनम जनम हौं मन जित्यो, अब मोहि जितैहो |
हौं सनाथ ह्वैहौ सही, तुमहू अनाथपति, जो लघुतहि न भितैहो ||
    भावार्थ :-  (अबसे पूर्व)  प्रत्येक जन्म में यह मन मुझे जीतता चला आया है (मैं इससे हारकर विषयोंमें फँसता रहा हूँ ), इस बार क्या आप मुझे इससे जीता देंगे ?) (क्या यह मेरे वश होकर केवल आपके चरणों में लग जाएगा ?) (तब) मैं तो सनाथ  हो ही जाऊंगा किन्तु आप भी यदि मेरी क्षुद्रता से नहीं डरेंगे,तो 'अनाथ-पति' पुकारे जाने लगेंगे (मेरी नीचतापर ध्यान न देकर मुझे अपना लेंगे तो आपका अनाथ- नाथ विरद भी सार्थक हो जायगा )||

बिनय करों अपभयहु तेन, तुम्ह परम हिते हो | 
तुलसि दास कासों कहै, तुमही सब मेरे , प्रभु-गुरु, मातु-पितै हो ||
    भावार्थ :- मै अपने ही डरके मारे आपसे यों विनय कर रहा हूँ | आप तो मेरे परम हितु हैं | (परन्तु नाथ!) यह तुलसिदास अपना दुःख और किसे सुनाने जाय ? क्योंकि मेरे तो मालिक, गुरु, माता, पिता आदि सब कुछ केवल आप ही हैं ||

जय सिया राम ||
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/01/vinay-patrika-73.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/95-vinay-patrika.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/96.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/98-vinay-patrika-98.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/211-vinay-patrika.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/93-vinay-patrika-93-93.html

🙏 कृपया लेख पसंद आये तो अपना विचार कॉमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें । 
 इसे शेयर करें, जिससे और भी धर्मानुरागियों को इसका लाभ मिल सके (प्राप्त कर सकें) ।🙏
साथ ही ऐसी अन्य आध्यात्मिक, भक्ती, पौराणिक  कथा , भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की कथा , श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस आदि से सम्बधित जानकारी पाने के लिए अमृत रहस्य  https://amritrahasya.blogspot.com/ के साथ जुड़े रहें ।

टिप्पणियाँ

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad

विनय पत्रिका-102।हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।Vinay patrika-102।Hari! Tum Bahut Anugrah kinho।

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

विनय पत्रिका 252| तुम सम दीनबन्धु, न दिन कोउ मो सम, सुनहु नृपति रघुराई । Pad No-252 Vinay patrika| पद संख्या 252 ,

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

गोविंद नामावलि Govind Namavli-श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा-Shri Shrinivasa Govinda-Shri Venkatesh Govinda

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

श्री विष्णु आरती। Sri Vishnu Aarti।ॐ जय जगदीश हरे।Om Jai Jagdish Hare।

शिव आरती।जय शिव ओंकारा।Shiv Arti। Jay Shiv Omkara।