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श्री कृष्णमधुराष्टकम।अधरं मधुरं वदनं मधुरं।Sri Krishn Madhurashtkm- Adharm Madhurm Vadanam Madhuram।

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श्री कृष्णमधुराष्टकम(hindi/hindi Bhavarth/English) अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् |       हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम् |        चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ |       नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् |       रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं स्मरणं मधुरम् |        वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा |       सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || गोपि मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम् |        दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा |...

बाल समय रवि भक्षी लियो तब। HANUMAN ASHTAK- Bal Samay Ravi Bhakchhi Liyo Tab।हनुमान अष्टक ।

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हनुमान अष्टक (Hindi/English) बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों। ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो। देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो। को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो। चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो। कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो      को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥  अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो। जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो। हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो  को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥  रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो। चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो । को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥ इस हनुमान अष्टक भजन का  YouTube video link :-  https://youtu.be/pHhgqnT8...

श्री भवानी अष्टक।न तातो न माता न बन्धुर्न दाता।Sri Bhavani Ashtak-N Tato N Mata N Bandhurn Data।

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श्री भवानी अष्टक :- (हिन्दी /हिन्दी भावार्थ ) न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता । न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ भवाब्धावपारे महादु:ख्भीरू पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्त: । कुसंसारपाशप्रबध्द: सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ न् जानामि दानं न च ध्यानयोगम् न जानामि तन्त्रम् न च स्तोत्र स्तोत्रम्न्त्रम् ।  न जानामि पुजाम् न च न्यासयोगम् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ न जानामि पुण्यं न जानामि तिर्थम् न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।  न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ कुकर्मी कुसड्गी कुबुध्दी: कुदास्: कुलाचारहीन्: कदाचारलीन्: ।  कुदृष्टी: कुवाक्यप्रबन्ध्: सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ प्रजेशम् रमेशम् महेशम् सुरेशम् दिनेशम् निशीधेश्वरं वा कदाचित् ।  न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।  अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्...

लक्ष्मी माता आरती-ॐ जय लक्ष्मी माता।Ma Lakshmi Arti-Om Jay Lakshmi Mata।

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लक्ष्मी माता आरती ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।      तुमको निस दिन सेवत हर-विष्णु-धाता॥ ॐ जय... उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।      सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय... तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता।      जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता॥ ॐ जय... तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।      कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय... जिस घर तुम रहती, तहं सब सद्गुण आता।      सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ॐ जय...   तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।      खान-पान का वैभव सब तुमसे आता॥ ॐ जय...   शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।      रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता॥ ॐ जय...   महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता।      उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता॥  ॐ जय... ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। यह भी पढ़े   दुर्गा आरती      जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ...

दुर्गा आरती ।जय अम्बे गौरी।Durga Aarti-Jai Ambe Gauri।

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दुर्गा आरती जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।      तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ जय अम्बे..... ॥  मांग सिंदूर विराजत ,टीको मृगमद को।      उज्ज्वल से दोउ नैना ,चंद्रबदन नीको ॥ जय अम्बे.....॥  कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।      रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥ जय अम्बे.....॥  केहरि वाहन राजत ,खड्ग खप्पर धारी।      सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःख हारी ॥ जय अम्बे.....॥  कानन कुण्डल शोभित ,नासाग्रे मोती।      कोटिक चंद्र दिवाकर ,राजत सम ज्योति ॥ जय अम्बे.....॥  शुम्भ-निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।      धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती ॥ जय अम्बे.....॥  चण्ड मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।      मधु कैटभ दोउ मारे ,सुर भयहीन करे ॥ जय अम्बे.....॥   ब्रह्माणी, रुद्राणी ,तुम कमला रानी ।      आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ॥ जय अम्बे.....॥  चौंसठ योगिनि मंगल गावत, नृत्य करत भैरू।      ब...

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

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धर्म ग्रंथों ऐसा कहा गया है की - बड़े लोगों द्वारा जाने-अनजाने में थोड़ी गलती होने पर भी बड़ा भयंकर परिणाम भगतना पड़ता है जैसे इंद्र ने माला का अपमान करके संकट प्राप्त किया।  दुर्वासा के शराप से  इन्द्र श्रीहीन होकर यत्र-तत्र सामान्य मनुष्य की तरह जीवन बिताने लगे। तीनों लोकों पर असुरों का राज्य हो गया। श्रीहीनता की स्थिति में देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने कहा कि आपलोग श्री बैकुंठनाथ भगवान की शरणागति करें, सागर में स्थाई जो भगवान है वही देवताओं की समस्या का निदान कर सकते हैं । तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने देवतावों को बताया की आदि आप स्वर्ग पर राज्य चाहते हैं तो दैत्यों से संधि कर समुद्र मंथन करिए उसमे से अमृत निकलेगा। जिसे ग्रहण कर अमर हो जाएंगे और अपनी श्रीसंपदा और राज्य प्राप्त कर पाएंगे । देवतावों ने भगवान से पूछा - क्या असुर इसके लिए तैयार होंगे ? भगवान ने बताया की जब लक्ष्य बड़ा हो, समय प्रतिकूल हो या शत्रु बलवान हो तो चाहे घर, पंचायत, जिला, राज्य या देश का  राजा (मुखिया)  हो ...

हनुमान आरती।आरती कीजै हनुमान लला की।Hanuman Aarti।Aarti Kijai Hanuman Lala Ki।

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हनुमान आरती आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।      जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।। अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।      दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए। लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।      लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे। लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।      पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े। बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।      सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे। कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।      जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।  लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।      आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। श्री हनुमान चालीसा पाठ से सभी मनुकामना होगी पूर्ण (हिन्दी भावार्थ सहित ) । लिंक-  https://amritrahasya.blogspot.com/2020/12/blog-post.html श्...

विनय पत्रिका-105।अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।Vinay patrika-105।Ablaun Nasani,Ab N Nasaihaun।

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अबलौं नसानी,अब न नसैहौं ।        राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं ॥      भावार्थ :-  अबतक तो (यह आयु व्यर्थ ही) नष्ट हो गयी, परन्तु अब इसे नष्ट नहीं होने दूंगा। श्रीरामकी कृपासे संसाररूपी रात्रि बीत गयी है, (मैं संसारकी माया-रात्रिसे जग गया हूँ) अब जागनेपर फिर (मायाका) बिछौना नहीं बिछाऊँगा (अब फिर मायाके फंदेमें नहीं फँसूंगा) ॥  पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं ।       स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं ॥      भावार्थ :-  मुझे रामनामरूपी सुन्दर चिन्तामणि मिल गयी है। उसे हृदयरूपी हाथसे कभी नहीं गिरने दूंगा। अथवा हृदयसे रामनामका स्मरण करता रहूँगा और हाथसे रामनामकी माला जपा करूँगा। श्रीरघुनाथजीका जो पवित्र श्यामसुन्दर रूप है उसकी कसौटी बनाकर अपने चित्तरूपी सोनेको कसूंगा। अर्थात् यह देखूूँगा कि श्रीरामके ध्यानमें मेरा मन सदा-सर्वदा लगता है कि नहीं॥  परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं ।        मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद...

विनय पत्रिका-90।ऐसी मूढ़ता या मनकी।Vinay patrika-90।Aisi Mudhta Ya Manki।

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ऐसी मूढ़ता या मनकी। परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकनकी  ॥ भावार्थ :-  इस मनकी मन की ऐसी मूर्खता है कि यह श्रीराम-भक्तिरूपी गंगाजीको छोड़कर ओसकी बूंदोंसे तृप्त होने की आशा करता है। धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घनकी । नहिं तहँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचनकी ॥  भावार्थ :-  जैसे प्यासा पपिहा धुएँका गोट देखकर उसे मेघ समझ लेता है, परंतु वहां (जानेपर) न तो उसे शीतलता मिलती है और न जल मिलता है, धुएँसे आंखें और फुट जाती हैं। (यही दशा इस मन की है)। ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तनकी ।  टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आननकी ॥ भावार्थ :-  जैसे मूर्ख बाज कांचकी फर्शमें अपने ही शरीरकी परछाई देखकर उसपर चोंच मारनेसे वह टूट जाएगी इस बातको भूखके मारे भूलकर जल्दीसे उसपर टूट पड़ता है (वैसे ही यह मेरा मन भी विषयोंपर टूट पड़ता है)। कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि! जानत हौ गति जनकी । तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दुख, करहु लाज निज पनकी ॥ भावार्थ :-  हे कृपाके भंडार! इस कुचालका मैं कहांतक वर्णन करूं? आप तो दासोंकी दशा जानते...