विनय पत्रिका-66।राम जपु, राम जपु,राम जपु बाबरे।Ram Japu,Ram Japu,Ram Japu बबरे|Vinay Patrika-66।



राम जपु, राम जपु, राम जपु बाबरे।
घोर भव- नीर- निधि नाम निज नाव रे।।
भावार्थः- अरे पागल! राम जप, राम जप, राम जप। इस भयानक संसाररूपी समुद्र से पार उतरनेके लिये श्रीरामनाम ही अपनी नाव है। अर्थात इस रामनाम रूपी नावमें बैठकर मनुष्य जब चाहे तभी पार उतर सकता है, क्योंकि यह मनुष्य के अधिकार में है।।

एक ही साधन सब रिद्धि-सिद्धि साधि रे।
ग्रसे कलि-रोग जोग-संजम- समाधि रे।।
भावार्थः- इसी एक साधन के बलसे सब ऋद्धि-सिद्धियों को साध ले, क्योंकि योग, संयम और समाधि आदि साधनों को कलिकाल रूपी रोगने ग्रस लिया है।।

भलो जो है, पोच जो है, दाहिनो जो, बाम रे।
राम नाम ही सों अंत सब ही को काम रे।।
भावार्थः- भला हो, बुरा हो, उलटा हो, सीधा हो, अन्तमें सबको एक रामनाम से ही काम पड़ेगा।।

जग नभ-बाटिका रही है फलि फूलि रे।
धुवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे।।
भावार्थः- यह जगत भ्रमसे आकाश में फले-फूले दिखनेवाले बगीचे के समान सर्वथा मिथ्या है, धुएँ के महलों की भाँति क्षण-क्षणमें दिखने और मिटनेवाले इन सांसारिक पदार्थों को देखकर तू भूल मत ।।

राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि मांगै कूर कौर रे।।
भावार्थः-जो राम नाम को छोड़कर दूसरेका भरोसा करता है, हे तुलसीदास! वह उस मूर्खके समान है, जो सामने परोसे हुए भोजन को छोड़कर एक-एक कौरके लिये कुत्ते की तरह घर-घर माँगता फिरता है।।
श्री सीता राम !!
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टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया आपने प्रयास किया ।
    साधु वाद आपके इस कोसिस के लिए

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