विनय पत्रिका-85। मन ! माधवको नेकु निहारहि। Vinay patrika,पद 85



मन! माधवको नेकु निहारहि।
सुनु सठ, सदा रंकके धन ज्यों, 
छिन-छिन प्रभुहिं सँभारहि।।
भावार्थ :- हे मन ! माधवकी ओर तनिक तो  देख! अरे दुष्ट! सुन, जैसे कंगाल क्षण-क्षणमें अपना धन संभालता है, वैसे ही तू अपने स्वामी श्रीरामजी का समरण किया कर।।

सोभा-सील-ग्यान-गुन-मंदिर, सुंदर परम उदरहि।
रंजन संत, अखिल अघ-गंजन, भंजन बिषय-बिकारहि।।
भावार्थ :- वे श्रीराम शोभा, शील, ज्ञान और सद्गुणोंके स्थान हैं। वे सुंदर और बड़े दानी हैं। संतोको  प्रसन्न करनेवाले, समस्त पापोंके नाश करनेवाले और विषयोंके विकारको मिटानेवाले हैं।।

जो बिनु जोग-जग्य-ब्रत-संयम गयो चहै भव-परही।
तौ जनि तुलसीदास निसि -बासर हरि-पद-कमल बिसरहि।।
भावार्थ :- यदि तू बिना ही योग, यज्ञ, व्रत और संयमके संसार-सागरसे पार जाना चाहता है तो हे तुलसीदास! रात-दिनमें श्रीहरिके चरण-कमलोंको कभी मत भूल।।

https://amritrahasya.blogspot.com/2021/01/vinay-patrika-73.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/95-vinay-patrika.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/96.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/98-vinay-patrika-98.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/99-vinay-patrika-99.html
https://amritrahasya.blogspot.com/2021/05/211-vinay-patrika.html

श्री सीता राम !

🙏 कृपया लेख पसंद आये तो अपना विचार कॉमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें । 
 इसे शेयर करें, जिससे और भी धर्मानुरागिओं  को इसका लाभ मिल सके (प्राप्त कर सकें) ।🙏
साथ ही ऐसी अन्य आध्यात्मिक, भक्ती, पौराणिक  कथा , भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की कथा , श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस आदि से सम्बधित जानकारी पाने के लिए अमृत रहस्य  https://amritrahasya.blogspot.com/ के साथ जुड़े रहें ।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad

विनय पत्रिका-102।हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।Vinay patrika-102।Hari! Tum Bahut Anugrah kinho।

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

विनय पत्रिका 252| तुम सम दीनबन्धु, न दिन कोउ मो सम, सुनहु नृपति रघुराई । Pad No-252 Vinay patrika| पद संख्या 252 ,

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

गोविंद नामावलि Govind Namavli-श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा-Shri Shrinivasa Govinda-Shri Venkatesh Govinda

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

श्री विष्णु आरती। Sri Vishnu Aarti।ॐ जय जगदीश हरे।Om Jai Jagdish Hare।

शिव आरती।जय शिव ओंकारा।Shiv Arti। Jay Shiv Omkara।