विनय पत्रिका-104।जानकी-जीवनकी बलि जैहौं।।Vinay patrika-104।Janki Jivanki Bali Jaihaun।

 

जानकी-जीवनकी बलि जैहौं ।
    चित कहै रामसीय-पद परिहरि अब न कहूँ चलि जैहौं  
    भावार्थ :- मैं तो श्रीजानकी-जीवन रघुनाथजीपर अपनेको न्योछावर कर दूंगा। मेरा मन यही कहता है कि अब मैं श्रीसीता-रामजीके चरणोंको  छोड़कर दूसरी जगह कहीं भी नहीं जाऊँगा ॥

उपजी उर प्रतीति सपनेहुँ सुख, प्रभु-पद-बिमुख न पैहौं ।
     मन समेत या तनके बासिन्ह, इहै सिखावन दैहौं ॥
    भावार्थ :- मेरे हृदयमें ऐसा विश्वास उत्पन्न हो गया है कि अपने स्वामी श्रीरामजीके चरणोंसे विमुख होकर मैं स्वप्नमें भी कहीं सुख नहीं पा सकूँगा। इससे मैं मनको तथा इस शरीरमें रहनेवाले (इन्द्रियादि) सभीको यही उपदेश दूंगा ॥

श्रवननि और कथा नहिं सुनिहौं, रसना और न गैहौं ।
    रोकिहौं नयन बिलोकत औरहिं, सीस ईस ही नैहौं॥
    भावार्थ :- कानोंसे दूसरी बात नहीं सुनूँगा, जीभसे दूसरेकी चर्चा नहीं करूँगा, नेत्रोंको दूसरी और ताकनेसे रोक लूंगा और यह मस्तक केवल भगवान्को ही झुकाऊँगा ॥

जातो-नेह नाथसों करि सब नातो-नेह बहैहौं ।
     यह छर भार ताहि तुलसी जग जाको दास कहैहौं ॥
    भावार्थ :- अब प्रभुके साथ नाता और प्रेम करके दूसरे सबसे नाता और प्रेम तोड़ दूंगा। इस संसारमें मैं तुलसीदास जिसका दास कहाऊँगा फिर अपने सारे कर्मोंका बोझा भी उसी स्वामीपर रहेगा ॥

श्री सीता राम !
यह भी पढ़े श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित विनय पत्रिका, पद-103,
 यह बिनती रघुबीर गुसाई
लिंक :- https://amritrahasya.blogspot.com/2021/06/103-vinay-patrika-103yah-binati.html

🙏 कृपया लेख पसंद आये तो  इसे शेयर करें, जिससे और भी धर्मानुरागियों को इसका लाभ मिल सके (प्राप्त कर सकें) ।🙏
साथ ही ऐसी अन्य आध्यात्मिक, भक्ती, पौराणिक  कथा , भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की कथा , श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस आदि से सम्बधित जानकारी पाने के लिए अमृत रहस्य  https://amritrahasya.blogspot.com/ के साथ जुड़े रहें ।

टिप्पणियाँ

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

बाल समय रवि भक्षी लियो तब। HANUMAN ASHTAK- Bal Samay Ravi Bhakchhi Liyo Tab।हनुमान अष्टक ।

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad

शिव आरती।जय शिव ओंकारा।Shiv Arti। Jay Shiv Omkara।

विनय पत्रिका-120हे हरि! कस न हरहु भ्रम भारी He Hari! Kas N Harhu Bhram Bhari- Vinay patrika-120

विनय पत्रिका-107।है नीको मेरो देवता कोसलपति राम।Hai Niko Mero Devta Kosalpati।Vinay patrika-107।

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

विनय पत्रिका-124-जौ निज मन परिहरै बिकारा-Vinay patrika-124-Jau Nij Man Pariharai Bikara

श्री हनुमान चालीसा |Shri Hanuman Chalisa|श्री गुरु चरण सरोज रज।Sri Guru Charan Saroj Raj।