विनय पत्रिका-116माधव! असि तुम्हारि यह माया Madhav! Asi Tumhari Yah Maya- Vinay patrika-116।


माधव! असि तुम्हारि यह माया।
    करि उपाय पचि मरिय, तरिय नहिं, जब लगि करहु न दाया ॥ १ ॥
     भावार्थ - हे माधव! तुम्हारी यह माया ऐसी (दुस्तर) है कि कितने ही उपाय करके पच मरो, पर जबतक तुम दया नहीं करते तबतक इससे पार पा जाना असम्भव ही है॥१॥

सुनिय, गुनिय, समुझिय, समुझाइय, दसा हृदय नहिं आवै।
    जेहि अनुभव बिनु मोहजनित भव दारुन बिपति सतावै ॥२॥
    भावार्थ - सुनता हूँ, विचारता हूँ, समझता हूँ तथा दूसरोंको समझाता हूँ, पर तुम्हारी इस मायाका यथार्थ रहस्य समझमें नहीं आता और जबतक इसके वास्तविक रहस्यका अनुभव नहीं होता, तबतक मोहजनित संसारकी महान् विपत्तियाँ दु:ख देती ही रहेंगी ॥ २ ॥ 

ब्रह्म-पियूष मधुर सीतल जो पै मन सो रस पावै ।
    तौ कत मृगजल-रूप बिषय कारन निसि बासर धावै ॥ ३॥
    भावार्थ - ब्रह्मामृत बड़ा ही मधुर और शान्तिकर है, यदि मनको वह अमृतरस कहीं चखनेको मिल जाय, तो फिर यह विषयरूपी झूठे मृगजलके लिये क्यों रात-दिन भटकता फिरे ॥ ३ ॥
जेहिके भवन बिमल चिंतामनि, सो कत काँच बटोरै।
    सपने परबस परै, जागि देखत केहि जाइ निहोरै ॥४॥

    भावार्थ - जिसके घरमें ही निर्मल चिन्तामणि विद्यमान है, वह काँच क्यों बटोरेगा? भाव यह कि जिसे ब्रह्मानन्द प्राप्त हो गया, वह मायिक विषयानन्दकी ओर क्यों ताकने लगा? जैसे कोई सपनेमें किसीके पराधीन हो जाय और (छूटनेके लिये उससे) विनय करे, पर जब जाग जाय तब वह किससे क्यों निहोरा करेगा ? ॥ ४ ॥ 

 ग्यान-भगति साधन अनेक, सब सत्य, झूठ कछु नाहीं।
    तुलसिदास हरि-कृपा मिटै भ्रम, यह भरोस मनमाहीं ॥ ५ ॥
    भावार्थ - ज्ञान, भक्ति आदि अनेक साधन हैं और सभी सच्चे हैं, इनमें झूठ एक भी नहीं। परन्तु तुलसीदासके मनमें तो इसी बातका भरोसा है कि अज्ञानका नाश केवल श्रीहरि-कृपासे ही हो सकता है। अर्थात् भगवत्कृपा ही परम साधन है और वह सब जीवोंपर है ही, केवल उसपर भरोसा या परम विश्वास करना चाहिये ॥ ५ ॥

टिप्पणियाँ

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad

विनय पत्रिका-102।हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।Vinay patrika-102।Hari! Tum Bahut Anugrah kinho।

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

विनय पत्रिका 252| तुम सम दीनबन्धु, न दिन कोउ मो सम, सुनहु नृपति रघुराई । Pad No-252 Vinay patrika| पद संख्या 252 ,

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

गोविंद नामावलि Govind Namavli-श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा-Shri Shrinivasa Govinda-Shri Venkatesh Govinda

श्री विष्णु आरती। Sri Vishnu Aarti।ॐ जय जगदीश हरे।Om Jai Jagdish Hare।

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

शिव आरती।जय शिव ओंकारा।Shiv Arti। Jay Shiv Omkara।