विनय पत्रिका-128-सुमिरु सनेह-सहित सीतापति-Vinay Patrika-128 Sumiru Saneh-Sahit Sitapati


सुमिरु सनेह-सहित सीतापति। 
       रामचरन तजि नहिँन आनि गति ॥ १ ॥ 
    भावार्थ :- रे मन! प्रेमके साथ श्रीजानकी-वल्लभ रामजीका स्मरण कर। क्योंकि श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंको छोड़कर तुझे और कहीं गति नहीं है ॥ १ ॥

जप, तप, तीरथ, जोग समाधी। 
        कलिमति बिकल, न कछु निरुपाधी ॥ २ ॥ 
      भावार्थ :- जप, तप, तीर्थ, योगाभ्यास, समाधि आदि साधन हैं; परन्तु कलियुगमें जीवोंकी बुद्धि स्थिर नहीं है इससे इन साधनोंमें से कोई भी विघ्नरहित नहीं रहा ॥ २ ॥ 

करतहुँ सुकृत न पाप सिराहीं ।
         रकतबीज जिमि बाढ़त जाहीं ॥ ३ ॥
        भावार्थ :- आज पुण्य करते भी (बुद्धि ठिकाने न होनेसे) पापोंका नाश नहीं होता। रक्तबीज राक्षसकी भाँति ये पाप तो बढ़ते ही जा रहे हैं। भाव यह है कि बुद्धिकी विकलतासे पापमें पुण्य-बुद्धि और पुण्यमें पाप-बुद्धि हो रही है, इससे पुण्य करते भी पाप ही बढ़ रहे हैं ॥ ३ ॥

 हरति एक अघ-असुर- जालिका ।
         तुलसिदास प्रभु-कृपा-कालिका ॥ ४ ॥
        भावार्थ :-  हे तुलसीदास! इस पापरूपी राक्षसोंके समूहको नाश तो केवल प्रभुकी कृपारूपी कालिकाजी ही करेंगी। (भगवत्कृपाकी शरण लेनेके सिवा अब अन्य किसी साधनसे काम नहीं निकलेगा) ॥ ४ ॥

टिप्पणियाँ

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad

विनय पत्रिका-102।हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।Vinay patrika-102।Hari! Tum Bahut Anugrah kinho।

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

विनय पत्रिका 252| तुम सम दीनबन्धु, न दिन कोउ मो सम, सुनहु नृपति रघुराई । Pad No-252 Vinay patrika| पद संख्या 252 ,

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

गोविंद नामावलि Govind Namavli-श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा-Shri Shrinivasa Govinda-Shri Venkatesh Govinda

श्री विष्णु आरती। Sri Vishnu Aarti।ॐ जय जगदीश हरे।Om Jai Jagdish Hare।

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

शिव आरती।जय शिव ओंकारा।Shiv Arti। Jay Shiv Omkara।