विनय पत्रिका-132 राम-से प्रीतमकी प्रीति Vinay Patrika-132 Ram Se Pritamki Priti



राम-से प्रीतमकी प्रीति-रहित जीव जाय जियत । 
    जेहि सुख सुख मानि लेत, सुख सो समुझ कियत ॥ १ ॥ 
    भावार्थ - श्रीराम- सरीखे प्रीतमसे प्रेम न करके यह जीव व्यर्थ ही जीता है; अरे! जिस (विषय-सुख) को तू सुख मान रहा है, तनिक विचार तो कर, वह सुख कितना-सा है?॥१॥ 

जहँ- जहँ जेहि जोनि जनम महि, पताल, बियत।
 तहँ तहँ तू विषय-सुखहिं, चहत लहत नियत ॥ २॥ 
        भावार्थ - जहाँ-जहाँ, जिस-जिस योनिमें— पृथ्वी, पाताल और स्वर्गमें तूने जन्म लिया, तहाँ-तहाँ तूने जिस विषय-सुखकी कामना की, वही प्रारब्धके अनुसार तुझे मिला (परन्तु कहीं भी तू परम सुखी तो नहीं हुआ?) ॥ २ ॥

कत बिमोह लट्यो, फट्यो गगन मगन सियत । 
तुलसी प्रभु-सुजस गाइ, क्यों न सुधा पियत ॥ ३ ॥
        भावार्थ -  क्यों मोहमें फँसकर फटे आकाश के सीनेमें तल्लीन हो रहा है? भाव यह है कि जैसे आकाशका सीना असम्भव है, वैसे ही सांसारिक विषय-भोगोंमें आनन्द मिलना असम्भव है। इसलिये हे तुलसी ! यदि तुझे आनन्दहीकी इच्छा है, तो प्रभु श्रीरामचन्द्रजीका सुन्दर गुण-गानकर अमृत क्यों नहीं पीता (जिससे अमर होकर आनन्दरूप ही बन जाय।) ॥ ३ ॥



टिप्पणियाँ

अमृत रहस्य, अमृत ज्ञान,

हिंदी गिनती 01 To 100 Numbers Hindi and English Counting ginti

गरुड़जी एवं काकभुशुण्डि संवाद Garud - Kakbhushundi Samvad

विनय पत्रिका-102।हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।Vinay patrika-102।Hari! Tum Bahut Anugrah kinho।

समुद्र मंथन की कथा।Samudra Manthan katha।

विनय पत्रिका 252| तुम सम दीनबन्धु, न दिन कोउ मो सम, सुनहु नृपति रघुराई । Pad No-252 Vinay patrika| पद संख्या 252 ,

विनय पत्रिका-114।माधव! मो समान जग माहीं-Madhav! Mo Saman Jag Mahin-Vinay patrika-114।

गोविंद नामावलि Govind Namavli-श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा-Shri Shrinivasa Govinda-Shri Venkatesh Govinda

श्री विष्णु आरती। Sri Vishnu Aarti।ॐ जय जगदीश हरे।Om Jai Jagdish Hare।

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

शिव आरती।जय शिव ओंकारा।Shiv Arti। Jay Shiv Omkara।