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संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्-Sankat mochan Strotram-काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत-Kahe Vilamb Karo Anjni Sut

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संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् । काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।     नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।। खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।     हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।। काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।      जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।। रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।      निशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।। जाइ पाताल हने अहिरावण ।देविहिं टारि पाताल पठाई ।।      वै भुज काह भये हनुमन्त ।लियो जिहि ते सब संत बचाई ।। औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।      भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।। काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।।      गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।। छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।।      जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।। मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।      पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर

प्रार्थना स्तुति।Prathna Stuti-हे नाथ, मुझमें शबरी जैसा धैर्य नहीं-He Nath Mujhmen Shabri Jaisa Dhairy Nahi

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हे नाथ, मुझमें शबरी जैसा धैर्य नहीं ,  कि मैं सालों साल आपकी प्रतीक्षा कर सकूँ । हे नाथ, मुझमें केवट जैसी चतुराई नहीं  कि            मैं आपकी चरण सेवा कर सकूँ । हे नाथ, मुझमें गजेंद्र जैसी बुद्धि नही  कि            मैं आपकी स्तुति गायन कर सकूँ । हे नाथ, मुझमें विदुर जैसी सरलता नहीं ,             कि मैं अनासक्त रह सकूँ । हे नाथ, मुझमें सुदामा जैसा समर्पण नहीं ,             कि मैं सदा आपको भजता रह सकूँ । हे मेरे नाथ, मैं सबसे दीन हीन और कलयुग के समस्त दोषों से भरा जीव हूँ । फिर भी, मैं जैसा भी हूँ आपका हूँ ।             मेरा आपके सिवा और कौन है । हे दीनदयाल,हे दीनानाथ           मुझ पर कृपा करो, कृपा करो,कृपा करो ।।       🙏🏻जय श्रीमन्नारायण🙏🏻

श्री विष्णु अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्-Vishnu Ashtottr Sat Nam Stotram-Vasudevm HrishiKeshm Vamanm

॥ श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनामस्तोत्रम् ॥ (Hindi/English) वासुदेवं हृषीकेशं वामनं जलशायिनम् ।           जनार्दनं हरिं कृष्णं श्रीवक्षं गरुडध्वजम् ॥ 1 ॥ वाराहं पुंडरीकाक्षं नृसिंहं नरकांतकम् ।           अव्यक्तं शाश्वतं विष्णुमनंतमजमव्ययम् ॥ 2 ॥ नारायणं गदाध्यक्षं गोविंदं कीर्तिभाजनम् ।           गोवर्धनोद्धरं देवं भूधरं भुवनेश्वरम् ॥ 3 ॥ वेत्तारं यज्ञपुरुषं यज्ञेशं यज्ञवाहनम् ।           चक्रपाणिं गदापाणिं शंखपाणिं नरोत्तमम् ॥ 4 ॥ वैकुंठं दुष्टदमनं भूगर्भं पीतवाससम् ।           त्रिविक्रमं त्रिकालज्ञं त्रिमूर्तिं नंदकेश्वरम् ॥ 5 ॥ रामं रामं हयग्रीवं भीमं रॊउद्रं भवोद्भवम् ।           श्रीपतिं श्रीधरं श्रीशं मंगलं मंगलायुधम् ॥ 6 ॥ दामोदरं दमोपेतं केशवं केशिसूदनम् ।           वरेण्यं वरदं विष्णुमानंदं वासुदेवजम् ॥ 7 ॥ हिरण्यरेतसं दीप्तं पुराणं पुरुषोत्तमम् ।           सकलं निष्कलं शुद्धं निर्गुणं गुणशाश्वतम् ॥ 8 ॥ हिरण्यतनुसंकाशं सूर्यायुतसमप्रभम् ।           मेघश्यामं चतुर्बाहुं कुशलं कमलेक्षणम् ॥ 9 ॥ ज्योतीरूपमरूपं च स्वरूपं रूपसंस्थितम् ।           सर्वज्ञं सर्वरूपस्थं सर्वेशं सर्वतोमु

श्री रामानुज अष्टकम् Sri Ramanuj Ashtkam-Ramanujay Munye Nm Ukti

श्री रामानुज अष्टकम् रामानुजाय मुनये नम उक्ति मात्रं कामातुरोऽपि कुमतिः कलयन्नभीक्षम् ।           यामामनंति यमिनां भगवज्जनानां तामेव विंदति गतिं तमसः परस्तात् ॥ 1 ॥ सोमावचूडसुरशेखरदुष्करेण कामातिगोऽपि तपसा क्षपयन्नघानि ।           रामानुजाय मुनये नम इत्यनुक्त्वा कोवा महीसहचरे कुरुतेऽनुरागम् ॥ 2 ॥ रामानुजाय नम इत्यसकृद्गृणीते यो मान मात्सर मदस्मर दूषितोऽपि ।           प्रेमातुरः प्रियतमामपहाय पद्मां भूमा भुजंगशयनस्तमनुप्रयाति ॥ 3 ॥ वामालकानयनवागुरिकागृहीतं क्षेमाय किंचिदपि कर्तुमनीहमानम् ।           रामानुजो यतिपतिर्यदि नेक्षते मां मा मामकोऽयमिति मुंचति माधवोऽपि ॥ 4 ॥ रामानुजेति यदितं विदितं जगत्यां नामीपि न श्रुतिसमीपमुपैति येषाम् ।           मा मा मदीय इति सद्भिरुपेक्षितास्ते कामानुविद्धमनसो निपतंत्यधोऽधः ॥ 5 ॥ नामानुकीर्त्य नरकार्तिहरं यदीयं व्योमाधिरोहति पदं सकलोऽपि लोकः ।           रामानुजो यतिपतिर्यदि नाविरासीत् को मादृशः प्रभविता भवमुत्तरीतुम् ॥ 6 ॥ सीमामहीध्रपरिधिं पृथिवीमवाप्तुं वैमानिकेश्वरपुरीमधिवासितुं वा ।           व्योमाधिरोढुमपि न स्पृहयंति नित्यं रामानुजांघ्रियुगलं शरणं

श्री हयग्रीव स्तोत्रम् Sri Haygriv Stotram-Gyana Nandmym Devm-Nirmal

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  श्री हयग्रीव स्तोत्रम् (hindi/------) ज्ञाना नंदमयं देवं निर्मलस्फटिका कृतिं           आधारं सर्व विद्यानां हयग्रीव मुपास्महे ॥1॥ स्वतस्सिद्धं शुद्ध स्फटिक मणिभू भृत्प्रति भटं           सुधा सध्रीची भिर्द्युति भिरवदात त्रिभुवनं अनंतैस्त्रय्यंतैरनु विहित हेषाहल हलं           हताशेषा वद्यं हय वदन मीडेमहिमहः ॥2॥ समाहा रस्साम्नां प्रति पदमृचां धाम यजुषां           लयः प्रत्यूहानां लहरि विततिर्बोध जलधेः कथा दर्पक्षुभ्यत्कथककुल कोलाहल भवं           हरत्वंतर्ध्वांतं हय वदन हेषाहलहलः ॥3॥ प्राची संध्या काचि दंतर्निशायाः प्रज्ञादृष्टे रंजनश्रीरपूर्वा           वक्त्री वेदान् भातु मे वाजिवक्त्रा वागीशाख्या वासुदेवस्य मूर्तिः ॥4॥ विशुद्ध विज्ञान घन स्वरूपं विज्ञान विश्राण नबद्ध दीक्षं           दयानिधिं देहभृतां शरण्य देवं हयग्रीवमहं प्रपद्ये ॥5॥ अपौरुषेयैरपि वाक्प्रपंचैः अद्यापि ते भूतिमदृष्टपारां           स्तुवन्नहं मुग्ध इति त्वयैव कारुण्यतो नाथ कटाक्षणीयः ॥6॥ दाक्षिण्य रम्या गिरिशस्य मूर्तिः देवी सरोजासन धर्मपत्नी           व्यासा दयोऽपि व्यपदेश्यवाचः स्फुरंति सर्वे तव शक्तिलेशै

श्री वेंकटेश्वर प्रपत्ति-Venkateshwr Prapati-ईशानां जगतोऽस्य वेंकटपते-Ishanam Jagtosy Venkatpate

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श्री वेंकटेश्वर प्रपत्ति (Hindi/English) ईशानां जगतोऽस्य वेंकटपते र्विष्णोः परां प्रेयसीं           तद्वक्षःस्थल नित्यवासरसिकां तत्-क्षांति संवर्धिनीम् । पद्मालंकृत पाणिपल्लवयुगां पद्मासनस्थां श्रियं           वात्सल्यादि गुणोज्ज्वलां भगवतीं वंदे जगन्मातरम् ॥ श्रीमन् कृपाजलनिधे कृतसर्वलोक,             सर्वज्ञ शक्त नतवत्सल सर्वशेषिन् । स्वामिन् सुशील सुल भाश्रित पारिजात,           श्रीवेंकटेशचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 2 ॥ आनूपुरार्चित सुजात सुगंधि पुष्प,           सौरभ्य सौरभकरौ समसन्निवेशौ । सौम्यौ सदानुभनेऽपि नवानुभाव्यौ,           श्रीवेंकटेश चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 3 ॥ सद्योविकासि समुदित्त्वर सांद्रराग,           सौरभ्यनिर्भर सरोरुह साम्यवार्ताम् । सम्यक्षु साहसपदेषु विलेखयंतौ,           श्रीवेंकटेश चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 4 ॥ रेखामय ध्वज सुधाकलशातपत्र ,           वज्रांकुशांबुरुह कल्पक शंखचक्रैः । भव्यैरलंकृततलौ परतत्त्व चिह्नैः,           श्रीवेंकटेश चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ 5 ॥ ताम्रोदरद्युति पराजित पद्मरागौ,           बाह्यैर्-महोभि रभिभूत महेंद्रनीलौ । उद्य न्नखांशुभि रुदस्त शशांक

श्रीयुगल-स्तुति।Sri Yugal-श्यामा गौरी नित्य किशोरी-Stuti-Shyama Gauri Nity Kishori

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जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि गुणअभि

गोविंद नामावलि Govind Namavli-श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा-Shri Shrinivasa Govinda-Shri Venkatesh Govinda

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गोविंद नामावलि श्री श्रीनिवासा गोविंदा श्री वेंकटेशा गोविंदा       भक्तवत्सला गोविंदा भागवतप्रिय गोविंदा नित्यनिर्मला गोविंदा नीलमेघश्याम गोविंदा      पुराणपुरुषा गोविंदा पुंडरीकाक्ष गोविंदा गोविंदा हरि गोविंदा गोकुलनंदन गोविंदा नंदनंदना गोविंदा नवनीतचोरा गोविंदा      पशुपालक श्री गोविंदा पापविमोचन गोविंदा दुष्टसंहार गोविंदा दुरितनिवारण गोविंदा      शिष्टपरिपालक गोविंदा कष्टनिवारण गोविंदा गोविंदा हरि गोविंदा गोकुलनंदन गोविंदा वज्रमकुटधर गोविंदा वराहमूर्तिवि गोविंदा      गोपीजनलोल गोविंदा गोवर्धनोद्धार गोविंदा दशरथनंदन गोविंदा दशमुखमर्दन गोविंदा      पक्षिवाहना गोविंदा पांडवप्रिय गोविंदा गोविंदा हरि गोविंदा गोकुलनंदन गोविंदा मत्स्यकूर्म गोविंदा मधुसूधन हरि गोविंदा      वराह नरसिंह गोविंदा वामन भृगुराम गोविंदा बलरामानुज गोविंदा बौद्ध कल्किधर गोविंदा      वेणुगानप्रिय गोविंदा वेंकटरमणा गोविंदा गोविंदा हरि गोविंदा गोकुलनंदन गोविंदा सीतानायक गोविंदा श्रितपरिपालक गोविंदा      दरिद्रजन पोषक गोविंदा धर्मसंस्थापक गोविंदा अनाथरक्षक गोविंदा आपद्भांदव गोविंदा      शरणागतवत्सल गोविंदा क

गणेशकवचम्-Shri-Ganesh Kavachm-Shrinu Vashchhyami Kavachm SarvSiddhikrm priye

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  ॥ हरिद्रागणेशकवचम् ॥ शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये । पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्वसङ्कटात् ॥ १॥ अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् । सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ २॥ ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि । सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ ३॥ गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः । गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ ४॥ जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा । विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ ५॥ गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम । विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ ६॥ गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके । लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ ७॥ व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा । जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ ८॥ हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः । य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ ९॥ कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् । सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ १०॥ सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् । सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ ११॥ ग्रहपीडा ज्वरा

हनुमानजी की 16 सिद्धियाँ-Hanumanji Ki 16 Siddhiyan

हनुमानजी की 16 सिद्धियाँ :- हमारे पुराणों में १६ मुख्य सिद्धियों का वर्णन किया गया है। किसी एक व्यक्ति में सभी १६ सिद्धियों का होना दुर्लभ है। केवल अवतारी पुरुष, जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि में ही ये सारी सिद्धियाँ हो सकती है। साथ ही बहुत सिद्ध ऋषियों जैसे सप्तर्षियों में ये सभी  सिद्धियाँ हो सकती है। आइये इन सिद्धियों के विषय में कुछ जानते हैं.       वाक् सिद्धि : ऐसी सिद्धि जिससे वो व्यक्ति जो कुछ भी कहे वो घटित हो जाये। पुराने काल में सिद्ध ऋषि-मुनियों में ये सिद्धि होती थी और इसी कारण वे श्राप या वरदान देने में सक्षम थे। सिर्फ सिद्ध ऋषि ही नहीं, कुछ असाधारण व्यक्तियों में भी ऐसी शक्तियां होती थी। जैसे शांतनु ने अपने पुत्र भीष्म को इच्छा मृत्यु और और द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को चिरंजीवी होने का वरदान दिया। कई बार जब व्यक्ति अपने चरम आवेग में होता है तब भी उसके मुख से निकली हुई बात सच हो जाती है।       दिव्य दृष्टि : दिव्य दृष्टि उस शक्ति को कहते हैं जिससे आप किसी भी व्यक्ति के भूत, वर्तमान एवं भविष्य का ज्ञान हो जाये। दिव्य दृष्टि और त्रिकालदर्शी होने में अंतर है। दिव्

गणेश चालीसा-Shri Ganesh Chalisa-Jay Ganpati Sadgun Sadan Kavivr Badan Kripal-

गणेश चालीसा जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।      विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥ जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥      जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥ वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥      राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥ पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥      सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥ धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥      ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥ कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥      एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥ भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।      अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥ अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥      मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥ गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥      अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥ बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठ

रामायण जय मंत्रम्-Ramayan Jay Mantrm-Jaytytiblo Ramo Lakshmansch Mhabalh

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रामायण जय मंत्रम् (Hindi/English) जयत्यति बलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः      राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभि पालितः । दासोहं कोसलेंद्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः      हनुमान् शत्रुसैन्यानां निहंता मारुतात्मजः ॥ न रावण सहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्      शिलाभिस्तु प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः । अर्धयित्वा पुरीं लंकामभिवाद्य च मैथिलीं      समृद्धार्धो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम्  Ramayan Jay Mantrm Jaytytiblo Ramo Lakshmansch Mhabalh      Raja Jayati Sugrivo Raghavenabhipalit h। Dasohm Koshlendrsy Ramsyaklist Krmnh      Hanuman Satrusainyanam Nihnta Marutatmaj h ॥ N Ravan Sahastrm Me Yuddhe Pratibalm Bhavet      Silabhistu Prahart h Padpaisch Sahstras h । Ardh YitvaPurim Lankam Bhivady Ch Maithilim      Samriddhardho Gamishyami Misatm Sarvarakṣasām ॥

शिव रुद्राष्टक-Siv Rudrastkam-नमामीशमीशान निर्वाण रूपं-Nmami Shmishan-Nivarn Rupm

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|| शिव रुद्राष्टक|| नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।      निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥   निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।      करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥   तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।      स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥   चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।      मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥   प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।      त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥   कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।      चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥   न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।      न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥   न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।      जरा

श्रीकृष्णलीलास्तुतिः।Sri Krishnalila Stuti-Nigmtaroh Pratishakhm Mrigitm Ch Mya Prm

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  श्रीकृष्णलीलास्तुतिः  निगमतरोः प्रतिशाखं मृगितं च मया परं ब्रह्म ।      मिलितमिदानीमङ्के गोकुलपङ्केरुहाक्षीणाम् ॥ 1॥ तप्तं तपोभिरन्यैः फलितं च तद्गोपबालानाम् ।      आसां यत्कुचकुम्भे नीलनिचोलायते परम्ब्रह्म ॥ 2॥ श्रुतिमपरे स्मृतिमपरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीताः ।      अहमपि नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परम्ब्रह्म ॥ 3॥ किं कथयामः कस्मै कस्य मनः प्रत्ययमाधत्ते ।      रमयति गोपवधूटीकुञ्जकुटीरे परम्व्रह्म ॥ 4॥ नीतन्नीतं नवनवनीतं केन च पीतं पयः क्व मे मुरली ।      इति समुदीर्य लुठन्तं भूमौ बालं नमामि गोपालं सम्पूर्णम् । 5॥ पश्यत बलमबलानामनाविले हृद्बिले बबन्धुर्याः ।      तनुदृष्टिपातरश्म्याऽऽकृष्टममूर्तं परम्ब्रह्म ॥ 6॥ एतत्त्वामहमर्थयामि सततं रे चित्त चिन्तातुर      मा चिन्तां कुरु चञ्चलेषु विषयेष्वागारदारादिषु ।7 गायन्तं यमुनातटद्रुमतले नीलाम्बुदश्यामलं      गोपालं वनमालिनं कमलिनं नन्दात्मजं चिन्तय ॥ 8॥ ध्यानाभ्यासवशीकृतेन मनसा तन्निर्गुणं निष्क्रियं      ज्योतिः किञ्चन योगिनो यदि परं पश्यन्ति पश्यन्तु ते । 9 अस्माकं तु तदेव लोचनचमत्काराय भूयाच्चिरं      कालिन्दीपुलिनेषु तत्किमपि य